Trending media Ind : सुप्रीम कोर्ट ने 23 जनवरी को एक अहम फैसले में कहा कि हिंदू महिला की मुस्लिम पुरुष के साथ शादी वैध नही माने जाएगी लेकिन ऐसे विवाह से जन्मी संतान वैध माने जाएगे। यह संतान पिता की पैतृक संपत्ति में हिस्सेदार माने जाएगे। जस्टिस एनवी रमना और जस्टिस एमएम शांतनगौडर की पीठ ने केरल हाई कोर्ट के उस आदेश को कायम रखा। जिसमें उसने मोहम्मद इल्यिास व वल्लिअम्मा (जो मैरेज के वक्त हिंदू थी) दंपती के बेटे को वैध मानते हुए पिता की संपत्ति में हिस्सेदार माना था।
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को दिए फैसले में निष्कर्ष रूप में कहा एक मुस्लिम पुरुष की किसी मूर्तिपूजक या अग्नि की उपासक महिला से मैरेज न तो वैध है और न ही शून्य बल्कि वह सिर्फ अस्थायी शादी है। ऐसे शादी से पैदा हुआ बच्चा पिता की संपत्ति में हिस्से का हकदार होगा।
सुप्रीम कोर्ट ने केरल हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ दायर अपील को खारिज करते हुए कहा कि हिंदू मूर्ति पूजा करते हैं। जिसमें प्रतिमा या तस्वीर शामिल है। उन पर पुष्प चढ़ाते हैं। उन्हें सजाते हैं ऐसे में किसी हिंदू महिला का मुस्लिम से निकाह अस्थायी ही माना जाएगा।
ऐसी अस्थायी मैरेज का कानूनी प्रभाव यह होगा कि रिश्ता टूटने की दशा में पत्नी मेहर की राशि पाने की तो हकदार होगी लेकिन वह पैतृक संपत्ति में हिस्सा नहीं मांग सकेगी। वहीं इस दंपति से जन्मा बच्चा अपने पिता की पैतृक संपत्ति में हिस्सा लेने का पात्र होगा। कोर्ट ने साफ कहा कि दूसरी ओर शादी शून्य घोषित होने का मतलब है कि दोनों पक्षों और संतान को किसी संपत्ति के अधिकार नहीं होंगे।
यह था मासला इल्यिास और वल्लिअम्मा के बेटे शम्सुद्दीन ने अपने पिता की मौत के बाद विरासत में मिली पैतृक संपत्ति में हिस्सेदारी पर दावा किया था। केरल हाई कोर्ट ने उसके दावे को सही माना था। इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की गई थी। अपील खारिज करते हुए शीषर्ष कोर्ट ने ऐसी शादी से जन्म बच्चे को पिता की पैतृक संपत्ति में हकदार माना है लेकिन विवाह को अस्थायी भी बताया।
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