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आखिर क्या वजह था कि Mahabharata का युद्ध कुरुक्षेत्र में ही लड़ा गया


नमस्कार दोस्तों जैसा कि Mahabharata के कौरवों और पांडवों के बीच हुए महायुद्ध के बारे में तो आप सभी जानते ही किंतु आज हम बताए गै कुरुक्षेत्र में क्यों लड़ा गया था और इसके पीछे का वजह क्या थी।


Mahabharata



 महाभारत का यह युद्ध कुरुक्षेत्र में ही क्यों हुआ 


दरअसल इसके पीछे का वजह बना देवराज इंद्र द्वारा राजा कुरु को दिया गया वरदान जी हाँ, भरतवंश में राजा कुरु ने इस भूमि को बार-बार जोता जिसके वजह यह भूमि कुरुक्षेत्र कहलाई और राजा कुरु को देवराज इंद्र ने वरदान दिया था कि जो भी व्यक्ति इस जगह पर युद्ध करते हुए मरेगा, उसे स्वर्ग की प्राप्ति होगी। यही वजह है कि महाभारत का युद्ध कुरुक्षेत्र में लड़ा गया।


राजा कुरु का विवाह शुभांगी से हुआ जिनके पुत्र विदुरथ हुए, विदुरथ के संप्रिया से अनाश्वा, अनाश्वा के अमृता से परीक्षित, परीक्षित के सुयशा से भीमसेन, भीमसेन के कुमारी से प्रतिश्रावा, प्रतिश्रावा से प्रतीप, प्रतीप के सुनंदा से तीन पुत्र देवापि, बाह्लीक एवं शांतनु का जन्म हुआ। देवापि किशोरावस्था में ही संन्यासी हो गए एवं बाह्लीक युवावस्था में अपने राज्य की सीमाओं को बढ़ाने में लग गए। इसलिए सबसे छोटे पुत्र शांतनु को राज गद्दी मिली।

शांतनु के गंगा से देवव्रत हुए जो आगे चलकर भीष्म के नाम से प्रसिद्ध हुए। भीष्म का वंश आगे नहीं बढ़ा, क्योंकि उन्होंने आजीवन ब्रह्मचारी रहने की प्रतिज्ञा की थी। इसे उन्होंने इसलिए क्यों कि भीष्म पितामह आजीवन कुंवारे बताया जउनके  ब्रह्मचर्य का वजह अपने पिता का विवाह कराने के लिए की गई प्रतिज्ञा थी।


शांतनु की दूसरी पत्नी सत्यवती से चित्रांगद और विचित्रवीर्य हुए। चित्रांगद की मृत्यु के बाद विचित्रवीर्य का विवाह काशी की राजकुमारी अंबिका व अंबालिका से हुआ। इनसे धृतराष्ट्र व पांडु हुए। धृतराष्ट्र के पुत्र कौरव कहलाएं और पांडु के पुत्र पांडव।

महाभारत के मुताबिक कुरु ने जिस क्षेत्र को बार-बार विजय प्राप्ति की उसका नाम कुरुक्षेत्र पड़ा। बताया जाता कि जब कुरु इस क्षेत्र की जुताई कर रहे थे तब इन्द्र ने उनसे जाकर उसका वजह पूछा, कुरु ने कहा कि जो भी व्यक्ति इस स्थान पर मारा जाए, वह पुण्य लोक में जाए, ऐसी मेरी इच्छा है। इन्द्र उनकी बात को हंसी में उड़ाते हुए स्वर्गलोक चले गए। ऐसा अनेक बार हुआ। इन्द्र ने अन्य देवताओं को भी ये बात बताई। देवताओं ने इन्द्र से कहा कि यदि संभव हो तो कुरु को अपने पक्ष में कर लो। तब इन्द्र ने कुरु के पास जाकर कहा कि कोई भी पशु, पक्षी या मनुष्य निराहार रहकर या युद्ध करके इस स्थान पर मारा जायेगा तो वह स्वर्ग का भागी होगा। ये बात भीष्म, कृष्ण आदि सभी जानते थे, इसलिए महाभारत का युद्ध कुरुक्षेत्र में लड़ा गया।


महाभारत एवं अन्य पुराणों में कुरुक्षेत्र की महिमा के बारे में कहा गया है कि महाभारत के वनपर्व के मुताबिक़, कुरुक्षेत्र में आकर सभी लोग पापमुक्त हो जाते हैं और जो ऐसा कहता है कि मैं कुरुक्षेत्र जाऊंगा और वहीं निवास करुंगा। यहां तक कि यहां की उड़ी हुई धूल के कण पापी को परम पद देते हैं। नारद पुराण में आया है कि ग्रहों, नक्षत्रों एवं तारागणों को कालगति से (आकाश से) नीचे गिर पड़ने का भय है, परंतु वे जो कुरुक्षेत्र में मरते हैं पुन: पृथ्वी पर नहीं गिरते, अर्थात् वे पुन:जन्म नहीं लेते। भगवद्गीता के प्रथम श्लोक में कुरुक्षेत्र को धर्मक्षेत्र बताया गया है।


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