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radha krishna rani: श्रीराधा कृष्ण के 4 रहस्य , जिसे आप अब तक नही जानते हैं.....


radha krishna rani: नमस्कार मित्रो भगवान श्रीकृष्ण की प्रेमिका राधा Mahabharata में राधा  के नाम का वर्णन नहीं मिलता है। राधा का उल्लेख विष्णु, पद्म पुराण और ब्रह्मवैवर्त पुराण में मिलता है। राधा और रुक्मणि दोनों ही कृष्ण से उम्र में बड़ी थीं। मान्यता और किवदंतियों के मुताबिक आईए हम जानते हैं राधा रानी के 4 ऐसे रहस्य जिन्हें जानकर आपको हैरानी होगी।
radha krishna rani



1. प्रथम राज : पद्म पुराण के मुताबिक राधा वृषभानु नामक वैष्य गोप की पुत्री थीं। उनकी माता का नाम कीर्ति था। उनका नाम वृषभानु कुमारी पड़ा। बरसाना राधा के पिता वृषभानु का निवास स्थान था। कुछ विद्वान मानते हैं कि राधाजी का जन्म यमुना के नजदीक स्थित रावल ग्राम में हुआ था और बाद में उनके पिता बरसाना में बस गए। परंतु अधिकतर मानते हैं कि उनका जन्म बरसाना में हुआ था।

पुराणों के मुताबिक अष्टमी तिथि को कृष्ण पक्ष में श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था और इसी तिथि को शुक्ल पक्ष में देवी राधा का जन्म भी हुआ था। बरसाने में राधाष्टमी का त्योहार बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। राधाष्टमी का पर्व जन्माष्टमी के 15 दिन बाद भद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है।


राधारानी का विश्वप्रसिद्ध मंदिर बरसाना ग्राम की पहाड़ी मौजूदा है।बरसाना में राधा को 'लाड़ली बोला जाता है। राधा का प्राचीन मंदिर मध्यकालीन है जो लाल और पीले पत्थर का बना है। मंदिर का निर्माण राजा वीर सिंह ने 1675 में करवाया था।

2.  द्वितीय राज : कहा जाता है कि  राधा महल से जुड़े कार्य देखती थीं और मौका मिलते ही वे कृष्ण के दर्शन कर लेती थीं। एक दिन उदास होकर राधा ने महल से दूर जाना तय किया। कहा जाता है कि राधा एक जंगल के गांव में में रहने लगीं। धीरे-धीरे समय बीता और राधा बिलकुल अकेली और कमजोर हो गईं। उस समय उन्हें भगवान श्रीकृष्ण की याद सताने लगी। आखिरी समय में भगवान श्रीकृष्ण उनके सामने आ गए। भगवान श्रीकृष्ण ने राधा से कहा कि वे उनसे कुछ मांग लें परंतु राधा ने मना कर दिया। कृष्ण के दोबारा अनुरोध करने पर राधा ने कहा कि वे आखिरी बार उन्हें बांसुरी बजाते देखना और सुनना चाहती हैं। श्रीकृष्ण ने बांसुरी ली और बेहद सुरीली धुन में बजाने लगे। श्रीकृष्ण ने दिन-रात बांसुरी बजाई। बांसुरी की धुन सुनते-सुनते एक दिन राधा ने अपने शरीर का त्याग कर दिया।


3. तृतीय राज : ब्रह्मवैवर्त पुराण प्रकृति खंड अध्याय 48 के मुताबिक और यदुवंशियों के कुलगुरु गर्ग ऋषि द्वारा लिखित गर्ग संहिता की एक कथा के मुताबिक एक बार नंदबाबा श्रीकृष्ण को लेकर बाजार घूमने निकले थे। उसी बीच राधा और उनके पिता भी वहां पहुंचे थे। दोनों का वहां पहली बार मिलन हुआ। उस दौरान दोनों की ही उम्र बहुत छोटी थी। उस जगह को सांकेतिक तीर्थ स्थान कहते हैं। यह स्थान संभवत: नंदगांव और बरसाने के बीच है। संकेत का शब्दार्थ है पूर्वनिर्दिष्ट मिलने का स्थान। इसको लेकर ब्रह्मवैवर्त पुराण में बहुत बड़ी कथा मिलती है। श्रीमद्भागवत और विष्णुपुराण के मुताबिक कंस के अत्याचार से बचने के लिए नंदजी कुटुम्बियों और सजातियों के साथ नंदगांव से वृंदावन में आकर बस गए थे। जहां बरसाने के लोग भी थे। मान्यता है कि यहीं पर वृंदावन में श्रीकृष्‍ण और राधा एक घाट पर युगल स्नान करते थे। उस समय कृष्ण 7 साल के थे और राधे 12 की, उनके साथ उन्हीं की उम्र के बच्चों की एक बड़ी टोली रहा करती थी, जो गांव की गलियों में धमाचौकड़ी मचाया करती थी। वृंदावन में बच्चों की इस धमाचौकड़ी को भक्तिकाल के कवियों ने प्रेमलीला में बदल दिया। वृंदावन में ही श्रीकृष्ण और गोपियां आंख-मिचौनी का खेल खेलते थे। यहीं पर श्रीकृष्ण और उनके सभी सखा और सखियां मिलकर रासलीला जिसका अर्थ है कि होली आदि तीज-त्योहारों पर नृत्य-उत्सव का आयोजन करते थे।

4. चतुर्थः राज : 11 साल की उम्र में श्रीकृष्ण मथुरा चले गए थे और वहां उन्होंने कंस का वध कर दिया जिसके चलते मगध और भारत का सबसे शक्तिशाली राजा उनकी शत्रु बन गया। क्योंकि कंस उसका दामाद था। इसके बाद राधा और कृष्ण के मिलन का उल्लेख नहीं मिलता है। कहा जाता हैं कि इसके बाद राधा और श्रीकृष्ण की अंतिम मुलाकात द्वारिका में हुई थी। सारे कर्तव्यों से मुक्त होने के बाद राधा अंतिम बार अपने प्रियतम कृष्ण से मिलने गईं। जब वे द्वारका पहुंचीं तो उन्होंने कृष्ण के महल और उनकी 8 पत्नियों को देखा। जब कृष्ण ने राधा को देखा तो वे बहुत प्रसन्न हुए। तब राधा के अनुरोध पर कृष्ण ने उन्हें महल में एक देविका के पद पर नियुक्त कर दिया।


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