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क्या कांग्रेस ने वन्दे मातरम पर तुष्टिकरण की राजनिती के लिए प्रतिबंध लगाया जानिए वन्दे मातरम का वो इतिहास जिसे जानने के बाद आपको गर्व होगा वन्दे मातरम पर




मध्यप्रदेश वंदे मातरम बोलने रोका जा रहा है ऐसा फैसला एमपी के सीएम कमलनाथ ले लिया है जिसके बाद सवाल उठ रहा है क्या कांग्रेस की देश को बाटने की कोशिश कर रही है। दरअसल कमलनाथ ने वंदे मातरम को रोकने का फैसला किया, जिसे हर महीने पहली तारीख को मंत्रालय में गाया जाता था। इसकी शुरूआत की  मध्यप्रदेश पुर्व सीएम शिवराज सिंह सरकार इस परंपरा को शुरू किया। इसके तहत, मंत्रालय के सभी कर्मचारियों ने महीने के पहले दिन एक साथ राष्ट्रगान गाना था।

जहां कांग्रेस ने राष्ट्रगान पर अपनी स्थिति साफ नही की  है। वँही भाजपा पर कांग्रेस पर तुष्टिकरण राजनिति करने आरोप लगा रही है। इस मुद्दे भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने कहा कि यह किसी भी धर्म से जुड़ा हुआ है। लेकिन कांग्रेस ने गाने पर प्रतिबंध लगा दिया और धर्म को जोड़ दिया ।बतादें कि इस पहले अपने घोषणापत्र में सरकारी कर्मचारी संघ की शाखाओं में जाने पर प्रतिबंध लगाने की बात लिखी थी कांग्रेस के संवैधानिक सरकारी घरों के कार्यालयों में संगठन की शाखाएं शामिल हैं।



आईए जानते वंदे मातरम का इतिहास क्या कहलाती है चलिए जानते है बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय द्वारा संस्कृत बाँग्ला मिश्रित भाषा में रचित इस गीत का प्रकाशन सन् 1882 में उनके उपन्यास आनन्द मठ में जन्मसिद्ध गीत के रूप में हुआ था। इस उपन्यास में यह गीत भवानन्द नाम के संन्यासी द्वारा गाया गया है। इसकी धुन यदुनाथ भट्टाचार्य ने बनायी थी।

कैसे हुई राष्ट्रीय गीत की रचना

बंकिमचंद्र ने जब इस गीत की रचना की तब भारत पर ब्रिटिश शासकों का दबदबा था. ब्रिटेन का एक गीत था गॉड! सेव द क्वीन भारत के हर समारोह में इस गीत को अनिवार्य कर दिया गया. बंकिमचंद्र तब सरकारी नौकरी में थे। अंग्रेजों के बर्ताव से बंकिमचंद्र को बहुत बुरा लगा और उन्होंने साल 1876 में एक गीत की रचना की और उसका शीर्षक रखा गया वन्दे मातरम् शुरुआत में इसके केवल दो ही शब्द रचे गये थे जो संस्कृत में थे। इन दोनों पदों में केवल मातृभूमि की वन्दना थी। आगे का हिस्सा बांग्ला में लिख दिया गया जो मां दुर्गा की स्तुति ह
राष्ट्रगान के रूप में पहचान

राष्ट्रगान के रूप में  मिली पहचान 


स्वतंत्रता संग्राम में गीत की निश्चित भागीदारी के बावजूद, जब यह राष्ट्रगान पसंदतो इसे वंदे मातरम के जगह  पर रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा लिखा गया गीत जन गन मन को पसंद किया गाया। इसका कारण यह था कि कुछ मुसलमानों को 'वंदे मातरम' गाने में आपत्ति थी। क्योंकि इस गीत में देवी दुर्गा को एक राष्ट्र के रूप में देखा गया है। इसके अलावा उन्होंने यह भी माना कि आनंद मठ के उपन्यास से लिया गया गीत मुसलमानों के खिलाफ लिखा गया था।

आपत्ति को ध्यान में रखते हुए, 1937 में कांग्रेस ने विवाद की गहरी जानकारी दी। जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता वाली एक समिति की स्थापना, जिसमें मौलाना अब्दुल कलाम आज़ाद शामिल थे, यह पाया गया है कि गीत के पहले दो शब्दो में मातृभूमि की प्रशंसा की गई है, लेकिन बाद के भाग में हिंदू देवी-देवताओं का उल्लेख किया गया है। इसलिए यह तय किया गया था कि गीत के पहले दो छंदों को राष्ट्रगान के रूप में इस्तेमाल किया जाएगा। इस प्रकार, गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगौर के जन गन मन भारत का राष्ट्रगान  और राष्ट्रगीत की तौर पर वन्दे मातरम का चुना गया । स्वतंत्रता के बाद, डॉ।  राजेंद्र प्रसाद ने वंदे मातरम 24 जनवरी, 1950 को संविधान सभा के राष्ट्रगान के रूप में स्वीकार करने के बयान को पढ़ा, जिसे सभी सहसहमती स्वीकार कर लिया जिसके बाद वन्दे मातरम पर कोई विवाद कारण नही होना चाहिए और इतिहासकार ये मानते वन्दे मातरम हमे आजादी अहम रोल था।




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